अनुलोम-विलोम प्राणायाम !

अनुलोम-विलोम प्राणायाम


अनुलोम का अर्थ होता है सीधा और विलोम का अर्थ है उल्टा। यहां पर सीधा का अर्थ है नासिका या नाक का दाहिना (Right) छिद्र और उल्टा का अर्थ है-नाक का बायां (Left) छिद्र। अर्थात  अनुलोम-विलोम में नाक के दाएं छिद्र से सांस खींचते हैं, तो बायीं नाक के छिद्र से सांस बाहर निकालते है। इसी तरह यदि नाक के बाएं छिद्र से सांस खींचते है, तो नाक के दाहिने छिद्र से सांस को बाहर निकालते है। अनुलोम-विलोम प्राणायाम को कुछ योगीगण 'नाड़ी शोधक प्राणायाम' भी कहते है। उनके अनुसार इसके नियमित अभ्यास से शरीर की समस्त नाड़ियों का शोधन होता है यानी वे स्वच्छ व निरोग बनी रहती है।








विधि:- (Procedure)

  अपनी सुविधानुसार पद्मासन, सिद्धासन, स्वस्तिकासन अथवा सुखासन में बैठ जाएं। दाहिने (Right) हाथ के अंगूठे से नासिका के दाएं (Right)  छिद्र को बंद कर लें और नासिका के बाएं (Left)  छिद्र से 4 तक की गिनती में सांस को भरे और फिर बायीं (Right) नासिका को अंगूठे के बगल वाली दो अंगुलियों से बंद कर दें। तत्पश्चात दाहिनी (Right) नासिका से अंगूठे को हटा दें और दायीं (Right) नासिका से सांस को बाहर निकालें।

- अब दायीं (Right)  नासिका से ही सांस को 4 की गिनती तक भरे और दायीं (Right) नाक को बंद करके बायीं (Left) नासिका खोलकर सांस को 8 की गिनती में बाहर निकालें।

- इस प्राणायाम को 5 से 15 मिनट तक कर सकते है।


लाभ:-  ( Benefites)

  1. फेफड़े शक्तिशाली होते है।
  2. सर्दी, जुकाम व दमा की शिकायतों से काफी हद तक बचाव होता है।
  3. हृदय बलवान होता है।
  4. गठिया के लिए फायदेमंद है।
  5. मांसपेशियों की प्रणाली में सुधार करता है।
  6. पाचन तंत्र को दुरुस्त करता है।
  7. तनाव और चिंता को कम करता है।
  8. पूरे शरीर में शुद्ध ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाता है।



सावधानी :-  (precautions)

सास लेते समय अपना ध्यान दोनो आँखो के बीच में स्थित आज्ञा चक्र पर ध्यान एकत्रित करना चाहिए।
बायी नाडी को चन्द्र (इडा, गन्गा) नाडी, और दायी नाडी को सूर्य (पीन्गला, यमुना) नाडी केहते है।
चन्द्र नाडी से थण्डी हवा अन्दर जती है और सूर्य नाडी से गरम नाडी हवा अन्दर जती है।








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